बेटी बचेगी, तो ही पढ़ेगी सलिल सरोज
बेटी बचेगी, तो ही पढ़ेगी
सलिल सरोजपहले मेरे बदन से नफरत हुई,
इसलिए उसे नोचा,
फिर भी हवस न मिटी
तो गोलियों से खोंचा।
शायद हैवानियत की इन्तहां
अभी बाकी थी,
इसलिए चेहरे को पत्थर से थकूचा,
गलती मुझसे इतनी ही हुई थी
कि मैं बेटी पैदा हुई थी,
तुम्हारे दोगले समाज के लिए
चाशनी में सनी हुई रोटी पैदा हुई थी,
जिसे बेशर्मी के निबाले में
रोज़ कहीं न कहीं
तुम घोंटते रहे
और मर्दानगी के पीकदान में
थूक बनाकर मुझे फेंकते रहे।
#बेटी बचेगी, तो ही पढ़ेगी
#धर्म किसी की भी बेटी से बड़ा कभी नहीं हो सकता