मुल्क ही अगर नहीं होगा सलिल सरोज
मुल्क ही अगर नहीं होगा
सलिल सरोजइस थके जिस्म से सफर नहीं होगा,
अब तुम्हारे ख़्वाबों में बसर नहीं होगा,
धुआँ जब भर गया हो निगाहों में तो,
कहीं भी रहो तुम पर सहर नहीं होगा।
जो बरबस देख के भी आँखें मूँदते हैं,
उन पर मसीहाई का भी असर नहीं होगा,
सरहदें बाँटकर कब अमन हुआ है,
जब इधर नहीं हुआ तो उधर भी नहीं होगा,
तुम खूब कसीदे पढ़ा करो महफिलों में यूँ ही,
कुछ बचेगा क्या, मुल्क ही अगर नहीं होगा।