बस आसमान को बाँटना बाकी है सलिल सरोज
बस आसमान को बाँटना बाकी है
सलिल सरोजहमनें अपनी ज़मीनें तो बाँट ली हैं
बस आसमान को बाँटना बाकी है।
जो नस्ल उगाई थी सब्ज़ बागों में,
तने टूट गए, जड़ें काटना बाकी है।
अतीत की यादें तमाम सहम गई,
भविष्य के पंख छाँटना बाकी है।
रिश्ते-नाते खो दिए सूने मंज़र में,
बस खुद को ही डाँटना बाकी है।
दुनिया की दौलत है कोठियों में,
बस ख्वाहिशें समेटना बाकी है।