आदमी थक जा रहा है भोर में सत्येंद्र चौधरी "सत्या"
आदमी थक जा रहा है भोर में
सत्येंद्र चौधरी "सत्या"धोखा, धमकी और धमक धंधा है क्या?
निष्ठा, नियति और न्याय अब मंदा है क्या?
सब मिटे या फिर बिके, क्या हश्र है,
क्या आज भी इंसानियत पे फ़क्र है?
जी रहे क्यूँ अब सभी इस जोर में,
आदमी थक जा रहा है भोर में।
आजमाइश के यूँ संग-ए-दौर में
आदमी थक जा रहा है भोर में।
कब, कहाँ, कैसे, किसे मैं क्या कहूँ,
तेरी उल्फ़त में जियूँ या फिर मरूँ,
अब तो सब फ़तवे हटाकर देख ले,
हमदम मुझे दरियादिली से भेंट ले।
लफ़्ज़े-कसम क्या अब घुटेगी शोर में?
आदमी थक जा रहा है भोर में।