ऐ मेरे मन सलिल सरोज
ऐ मेरे मन
सलिल सरोजऐ मेरे मन
आज फिर
मुझको ले चलो वहाँ,
जहाँ
मेरी बेफ़िक्री,
मेरी ख़ुशदिली,
मेरी शरारतें,
मेरी मस्तियाँ,
सब
किसी बच्चे की तरह
पाक हैं,
जिन्हें छूकर
मैं
एक बार
फिर से
जी उठना चाहता हूँ,
ज़िन्दगी को बाँहों में
समेटना चाहता हूँ,
ये अनमना सी थकान,
दौड़ में शामिल होने की
जद्दोजहद से बचना चाहता हूँ,
किसी शान्त नदी से
समन्दर में खोना चाहता हूँ,
फिर से बच्चे की तरह
माँ की गोद में रोना चाहता हूँ।