इंसान होने के मायने सलिल सरोज
इंसान होने के मायने
सलिल सरोजगर मुझमें मेरी बच्चियों को बचाने की औकात नहीं,
तो मुझे यकीनन अपनी जान से गुज़र जाना चाहिए।
अगर की हैं समाज में तुमने कुछ सही तब्दीलियाँ,
तो वो हर एक आदमी को तो नज़र आना चाहिए।
जो रिवाज़ बाँधे रहे तुम्हारे अरमानों की उड़ान को,
उन को वक़्त रहते खुद ब खुद बदल जाना चाहिए।
बहुत तकलीफ है, बहुत घुटन है आज हवाओं में,
पेड़ की शाखों पे कोई खिलता मंज़र आना चाहिए।
बहुत दरिंदगी हुई है यहाँ शराफत के सफ़ेद चोलों में,
तमाशबीन शरीफों तक भी कोई खंज़र आना चाहिए।