किताब में कैद एक गुलाब सलिल सरोज
किताब में कैद एक गुलाब
सलिल सरोजमैं किसी प्रेमिका की किताब में कैद
अपनी टहनी से तोड़ा हुआ अभागा गुलाब हूँ,
जो किसी प्रेयसी के बालों में
चंद पलों का श्रृंगार बनकर,
स्टोर रूम के किसी कोने में पड़ी
किसी किताब में दबा दिया गया हूँ।
मुझे नहीं मालूम क्या मायने हैं
मेरे किसी के बालों में लगा दिए जाने में,
जिस तरह से ये किताबें उपेक्षित हैं,
मेरी भी उपेक्षा किए जाने में।
आखिर मैंने कभी नहीं कहा किसी से
मुझे शोभा का सामान बना लो,
और किसी को भी क्या आनन्द आता है
मुझे तिरस्कृत किए जाने में।
मैं काँटों से ही घिरा था पर
खुली हवा में साँसें लेता था,
यहाँ मकड़ी के जालों, टूटे सामानों
और धूल के बीच घुटता जाता हूँ।
मुझे पता है मेरी आयु खत्म हो चुकी है,
मैं फिर से वो लालिमा और सुगंध
वापस नहीं ला सकता हूँ,
पर इतनी इल्तज़ा है मेरी
कि जितनी ही देर सही
मैं भी स्वतंत्र जी सकता हूँ।