क्या याद है तुमको अदिति शर्मा
क्या याद है तुमको
अदिति शर्माक्या याद है तुमको
हर अल्फ़ाज़ तुम्हारा,
न सिर्फ लफ्ज़ बल्कि
वो अंदाज़ तुम्हारा।
जब बोला था तुमने
की नाक़ाबिल-ए-वफ़ा हो तुम समझी!
गैरो से बातें करती हो,
बेहया हो तुम समझी!
वो जब उल्टा जवाब दिया मैंने
तो कैसे गला दबा दिया था तुमने,
क्या याद है तुमको
मुझे लगभग जला दिया था तुमने।
उस रात जब नमक सब्ज़ी में
कुछ ज़्यादा पड़ गया था,
मेरे हाथ में चाकू
क्या यूँ ही गढ़ गया था?
क्या याद है तुमको
हर रात सोने से पहले,
मुझे रस्सी से बाँध देते थे,
जब हर हद्द हैवानियत की
तुम लांघ देते थे।
वो शाम जब तुमने
मुझे बेगैरत बुलाया था
और मेरे जिस्म पर अपना
गुस्सा दिखाया था।
क्या याद है तुमको
मैं तुमसे मोहब्बत करती थी,
तुम आज मुझे मारते हो
कभी मैं तुमपर मरती थी।
अपना सब कुछ गँवा कर
तुम्हारे खातिर आई थी,
बड़ी दुआओं के बाद
मैंने खुशियाँ जो पाई थीं।
क्या याद है तुमको
जो झूठ बोले थे तुमने,
फिर धीरे-धीरे से अपने
सब राज़ खोले थे तुमने।
फिर एक दिन मैंने खुदसे
नज़रें मिलाई थीं,
तब जाकर अपनी हालत
मैं कुछ समझ पाई थी।
क्या याद है तुमको
मैं तुमसे जीत गई उस दिन,
जेल में तुमको
भिजवा दिया जिस दिन।
अब ये खेल शिकार का
मुझे और डरा नहीं सकता,
जो दुबारा मेरे पास आए तुम,
तुम्हें कोई बचा नहीं सकता।
अगर भूल बैठे हो
तो वो दिन भी याद दिलाती हूँ,
अपने गुस्से की जिस दिन
तुम्हें बस एक झलक दिखाई थी,
क्या याद है तुमको
कि सालों बाद अचानक
कैसे तुमको अपनी
माँ याद आई थी।
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कोई भी रिश्ता तीन चीज़ों पर टिका होता है, पहली मोहब्बत, दूसरी इज़्ज़त और तीसरी भरोसा। किसी एक की भी कमी रिश्ते की बुनियाद को खोखला कर देती है। ज़ोर ज़बरदस्ती करना, हाथ उठाना और शब्दों के ज़रिए किसी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को ठेस पहुँचाना जिस रिश्ते में हो वो रिश्ता जल्द से जल्द खत्म हो जाए वही बेहतर है। समय के साथ समाज बदल रहा है आज की औरत पढ़ी लिखी और स्वाभिमानी है, वो गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने से डरती नहीं, पर एक रिश्ते को खत्म करने से पहले वो कई बार समझौता करती है, इस उम्मीद में कि कल शायद सब ठीक हो। अपनी कविता के ज़रिए गलत रिश्ते को एक तसवीर देने की कोशिश की है मैंने।