मैकदा और मीना अच्छा लगता है  सलिल सरोज

मैकदा और मीना अच्छा लगता है

सलिल सरोज

प्यास कब से थी मरघटों सी मेरे लबों पे,
तुझे पा के फिर से जीना अच्छा लगता है।

तेरे चेहरे पे मुस्कान की कलियाँ यूँ ही खिलती रहें,
तेरे लिए हज़ार ज़ख़्म भी सीना अच्छा लगता है।

जो भी बूँद होके गुज़रे तेरे मदभरे लबों से
मुझे आवारा बादल सा उसे पीना अच्छा लगता है।

तुम्हें सामने रख के देखूँ तो सब बदल जाता है,
मैं बाखुदा हूँ, पर मैकदा और मीना अच्छा लगता है।

मेरे नाम की नहीं तो न सही, पर ये तो सच है,
तेरे मरहमी हाथों में रचा हिना अच्छा लगता है।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1123
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com