मुझे नयन कारे-कारे ला के दे दो  सलिल सरोज

मुझे नयन कारे-कारे ला के दे दो

सलिल सरोज

शाम ढ़ल चुकी, मुझे आसमाँ के तारे ला के दे दो,
एक दो नहीं चाहिए, मुझे सारे के सारे ला के दे दो।
 

जिस में छिपा सकूँ मैं अपने सारे ख़्वाब हसीन,
किसी गोरी के मुझे नयन कारे-कारे ला के दे दो।
 

तुम गाँव में शहर बसाने चले हो तो इतना करो,
मेरे दोस्त-यार के मुझे चौक-चौबारे ला के दे दो।
 

रेगिस्तान हो गईं हैं आँखें इंतज़ार में अब तो,
माँ की मरहूम आँखों को आँसू की धारें ला के दे दो।
 

जो जंग जीत गए, वो खुश हैं मुझे पता नहीं,
मैं शोषितों का इतिहास हूँ, मुझे हारें ला के दे दो।
 

तुम तरक्की-पसंद हो, मुझे भी तो इसका इल्म कराओ,
जिनके घर बहा दिए तुमने, उनको किनारे ला के दे दो।

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