तू मेरा कल नहीं, तू मेरा आज नहीं सलिल सरोज
तू मेरा कल नहीं, तू मेरा आज नहीं
सलिल सरोजतू मेरा कल नही, तू मेरा आज नहीं,
तेरे मेरे दरम्यान अब कोई राज़ नहीं।
तूने बुलाने में बहुत देर कर दी हमनशीं,
सफ़र से लौट आने का रिवाज नहीं।
तेरा नूर भले माहताब होगा ज़माने में,
बेपर्दा हुस्न पर हमें तो कोई नाज़ नहीं।
हुस्न की फितरत है हर शय में बदल जाना,
इश्क़ के यूँ बेअदब हो जाने के अंदाज़ नहीं।
तुम तड़पोगी, तुम तरसोगी हमारे लिए,
मेरी जुदाई में आह होगी, आवाज़ नहीं।