मेरे राज़ अदिति शर्मा
मेरे राज़
अदिति शर्मामुझे समझने का दावा करते हो ना,
कभी जान पाए तुम कि मुझे मौत बुलाती है,
कि मुझे ज़िन्दगी डराती है,
कि जब-जब तुम देखते हो हँसते हुए मुझे
मेरी नज़रें आँसू छुपाती हैं।
कभी गौर किया तुमने
कि मैं भीड़ में चुप हो जाती हूँ,
कि मैं अपना चेहरा छुपाती हूँ,
कि मुझे दर्द होता है जब
तो मैं सबको हँसाती हूँ।
मुझसे हाथ मिलाते वक़्त
क्या मेरे हाथ देखे थे,
मेरी कविता पढ़ते पल
मेरे जज़्बात देखे थे,
क्या कभी देखा तुमने मुझको
अपने आपको नोचते हुए ज़ोरो से,
कभी आँखों में आँसू
मेरी बे बात देखे थे?
कभी सोचा है तुमने
कि मुझमें गुस्सा है इतना क्यों,
कि क्यों बात-बात पर नाराज़
मैं हो जाती हूँ,
कि जब खुद दूर जाती हूँ
तो खुद वापिस क्यों आती हूँ।
कभी देखा नहीं क्यों तुमने
मेरी किसी कॉपी का आखिरी पन्ना,
जब तुम लोगों में तन्हा होती हूँ
तो उसे ही शिकवे सुनाती हूँ।
अगर सब देखा है तुमने
अगर सब जानते हो तुम,
तो तुम्हारे होते हुए भी मैं
अकेली हूँ इतनी क्यों?
क्यों गले से लगाकर
कभी बोला नहीं तुमने
कि तन्हा नहीं हूँ मैं
तुम साथ हो मेरे,
क्यों रोका नहीं तुमने
मुझे खुदपर गुस्सा निकालने से।
क्यों बोला नहीं तुमने कि
मैं ज़रूरी हूँ ज़िन्दगी के लिए,
क्या तुम्हें भी प्यार नहीं मुझसे,
क्या तुम यार नहीं मेरे?
क्या सच है वो सब कुछ
जो मेरे खयाल बोलते हैं,
क्या यकीन कर लूँ उनपर
जब वो मुझे दिन रात कोसते हैं।
मुझे ना पैसे का लालच
ना शोहरत की चाहत है,
और अब इंसानियत से ऐतबार
टूटने लगा है हूँ।
तो क्या चली जाऊँ मैं उसके पास
जिसे चाहत है मेरी,
जो चीख-चीख के मुझे
बुलाती है रूबरू,
फिर बस कहना नहीं कभी
कि तुम्हें अंदाज़ा नहीं था
जो हुआ उसका,
तुम हर बात जानते थे
मेरे हर राज़ जानते थे।