सब हादसे दिन में मुक़म्मल होते नहीं सलिल सरोज
सब हादसे दिन में मुक़म्मल होते नहीं
सलिल सरोजसब हादसे दिन में मुक़म्मल होते नहीं,
कभी रात को देर तलक भी जागा करो।
सपने कैसे नेस्तोनाबूत होते हैं हर कदम,
कभी नंगे पाँव नींदों में भी भागा करो।
हर शय दूर से खूबसूरत दिखती है ज़रूर,
सच के वास्ते चाँद को ज़मीं पे भी उतारा करो।
दिन में नहीं दिखता गर इज़्ज़त का व्यापार,
कोई रात किसी झोपड़ी में भी गुज़ारा करो।
वो जो बच्चा तिरंगा बेचता है फुटपाथों पे,
अँधी गलियों में उसके रोने का भी नज़ारा करो।
हिम्मत जवाब दे जाएगी कुछ करने में,
गर कुछ किया है तो अच्छा भी दोबारा करो।