असल हाल  अदिति शर्मा

असल हाल

अदिति शर्मा

मेरे तखय्युल का वो महेज़ एक हिस्सा थे कभी,
आज मेरी तमाम हकीकत उनसे खौफ खाती है,
भाप हुई तस्कीन-ए-दिल की खातिर हर आरज़ू,
उन्हें देखती हूँ तो ये साँसें भी थम सी जाती हैं,
वो नज़रें जो मेरी हर हरकत पर टिकी होती हैं हमेशा,
वो नज़रें मुझे नज़रें उठाने पर जो बेहद डराती हैं।
 

एक किस्सा मेरा नसीब कंधों पर उठाए रखता है,
मेरे आज की हर कहानी पर पकड़ जमाए रखता है,
वो रस्सी जो मेरे पैरों से होकर मेरे हलक तक बँधी,
वो उस रस्सी से ही मेरी आवाज़ को दबाए रखता है।
 

कुछ जाल बिछे रहते हर ओर सबकी नज़रों से परे,
उन्हीं के खौफ में अक्सर मेरी रूह लडख़ड़ाती है,
आँखों के छलावे में फँसकर कहीं सब राख ना कर दूँ,
यही सोच मुझे शब-ओ-रोज़ आ आकर जलाती है,
वो लोग जो कभी मेरी कहानी के मशहूर किस्से थे,
मेरी नज़रे उन्हें अपने ही अक़्स में साँस लेता पाती है।
 

मेरे अल्फ़ाज़ मुझे सुकून से दूर भगाए रखते हैं,
मेरे खयाल मुझे रातों में जगाए रखते हैं,
मैं खुद को खुद से ही बचाने कि फ़िराक़ में रहूँ क्यों,
मेरे आँसू निगाहों को गले से लगाए रखते हैं।
 

अँधेरों की चीखें ज़हन को बेहरा करने पर जो तुली
वो चीखें मुझे हर रोज़ अपने पास बुलाती हैं,
जिन ख्वाबों के खातिर तुम मुझे जीने को कहते हो,
वो चीखें मेरे उन्हीं ख़्वाबों में अपनी मर्ज़ी चलाती हैं,
मुझसे पूछा था ना तुमने कि कैसी हो तुम 'अदीना',
मेरा असल हाल मेरी यही कविता बताती है।

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