लड़कियाँ जब प्रेम पत्र लिखती हैं सलिल सरोज
लड़कियाँ जब प्रेम पत्र लिखती हैं
सलिल सरोजलड़कियाँ जब प्रेम पत्र लिखती हैं तो
अक्षर या शब्द नहीं लिखती,
वो लिखती हैं खुद को
जो अब से पहले
कैद थी
बहेलिए के जाल में
किसी पंछी की तरह,
जिसे प्रेम ने मुक्त कराया
और आज़ादी दी
प्रेम नभ में विचरण करने की
और सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों से
अपने अंदर और बाहर को रंगने की
क्योंकि प्रेम में लड़कियाँ खुशरंग हो जाती हैं
और फिर वो लिखती हैं
अपार सम्भावनाएँ
जिसे उसने दूसरे प्रेमियों को देख कर संजोया है।
कैसे हाथों में हाथ डाले
दो और दो चार कदम
मीलों का सफर मिनटों में तय कर लेते हैं,
कैसे वो एक दूसरे की बातें सुन लेते हैं
जो अक्सर दोनों में से कोई कहता नहीं,
कैसे एहसास होने लगता है कि
फूल, चॉकलेट, डॉल बाज़ारवाद की नहीं
नव अंकुरित प्रेम की विसात होती हैं,
कैसे मालूम होता है कि
सूरज किसी की निगाहों में उगता है
और चाँद किसी की परछाई बन जाता है,
कैसे दीवार पर एक तस्वीर से
घंटों-घंटों बातें की जाती हैं,
कैसे किसी की जुल्फों में
बादल आ कर रातें करता है,
कैसे जिस्म खुद ब खुद
लाली, बिंदी, चूड़ी, कंगन, पाज़ेब का तलबगार होता है,
कैसे भूख और प्यास का
अर्थ बदलने लगता है,
कैसे किसी के एक दीदार को
मन चकवा की तरह तड़पने लगता है,
कैसे समाज, रिवाज़, विधि-विधान के बंधन को तोड़कर
मन किसी के पीछे भागने लगता है
और
कैसे चेहरे का सफ्फाक पीलापन बता देता है कि
लड़कियों के प्रेम में अब भी भाई और बाप बाधा हैं।
वो लिखती हैं
अपने सुनहरे भविष्य का इश्तहार
जिसमें शामिल होता है
हर परिस्थिति में एक दूसरे का साथ,
समय के साथ
एक दूसरे के लिए इज़्ज़त का बढ़ते जाना,
बुढापे में एक दूसरे की सहारे की छड़ी होना
और आखिरी साँस का
एक दूसरे से पहले लेना,
और मरने के बाद भी एक दूसरे के दिल में ज़िंदा रहना
और हर जन्म में
एक दूसरे को पाने की अनंत चाहत।
लेकिन
लड़कियाँ बहुत कुछ लिखना भूल जाती हैं,
क्योंकि प्रेम में सब अच्छा ही दिखता है
वो ये लिखना भूल जाती हैं कि
उनका प्रेम और समाज का कुठाराघात साथ-साथ चलता है,
प्रेम पर बार-बार
जाति, धर्म, बिरादरी
सँपोले की तरह कुंडली मार कर बैठा रहता है,
जिस राह पर चलकर मंज़िल आसान लगती है
वो राह किसी बंद मोड़ पर जा कर ख़त्म हो जाती है,
जहाँ की असलियत
उनकी रूमानी दुनिया से बिलकुल इतर होती है,
जहाँ लड़कियों का प्यार करना
इराक़ में अमरीकी फ़ौज के घुस जाने जैसा है,
जिसकी परिणति है
सिर्फ और सिर्फ ढ़ेर सारे आग और धुआँ का कोहरा
जिसके आगे सब दिखना बंद हो जाता है
और तब लड़कियों को अपना प्रेम
किसी कोढ़ की तरह लगने लगता है
जिसका निजात है भस्मीभूत होना।
लड़कियाँ, प्रेम में सिर्फ लड़कियाँ रहें तो भी
यह ख़तरा कम हो सकता है,
लेकिन लड़कियाँ प्रेम में मीरा होना चाहती हैं
जिसे प्रेम विछोह में
या तो दुःख भरे गीत गाने होते हैं
या फिर आँसुओं का एक समंदर तैयार करना होता है।