मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आतेहैं  सलिल सरोज

मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आतेहैं

सलिल सरोज

वो जो अपने हैं, बहुत दूर नज़र आते हैं,
कोई मुद्दा नहीं, पर मजबूर नज़र आते हैं।
 

कैसे निकल के आएँगी तल्खियों की बातें,
जहाँ भी नज़र जाए, जी हुज़ूर नज़र आते हैं।
 

जिस दिन से तकल्लुफ़ की आदत हुई है,
सभी के सभी महकमे बेनूर नज़र आते हैं।
 

तुम चले गए जब से अकेला छोड़ के हमें,
और कुछ नहीं , गम मंज़ूर नज़र आते हैं।
 

लोकतंत्र की खूबसूरती देख के दंग हूँ मैं,
मेहनती अब भी बस मजदूर नज़र आते हैं।
 

किसी को नहीं आता हो तो नहीं ही सही,
मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आते है।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
755
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com