मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आतेहैं सलिल सरोज
मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आतेहैं
सलिल सरोजवो जो अपने हैं, बहुत दूर नज़र आते हैं,
कोई मुद्दा नहीं, पर मजबूर नज़र आते हैं।
कैसे निकल के आएँगी तल्खियों की बातें,
जहाँ भी नज़र जाए, जी हुज़ूर नज़र आते हैं।
जिस दिन से तकल्लुफ़ की आदत हुई है,
सभी के सभी महकमे बेनूर नज़र आते हैं।
तुम चले गए जब से अकेला छोड़ के हमें,
और कुछ नहीं , गम मंज़ूर नज़र आते हैं।
लोकतंत्र की खूबसूरती देख के दंग हूँ मैं,
मेहनती अब भी बस मजदूर नज़र आते हैं।
किसी को नहीं आता हो तो नहीं ही सही,
मुझे भाषण जुमलों से भरपूर नज़र आते है।