अपनी लाश उठाने की सोचता हूँ  सलिल सरोज

अपनी लाश उठाने की सोचता हूँ

सलिल सरोज

मैं जब भी तुझे भुलाने की सोचता हूँ,
अपना ही दिल जलाने की सोचता हूँ।
 

जला दूँ तुम्हें लिखी मेरी सब चिट्ठियाँ,
मैं आग, पानी में लगाने की सोचता हूँ।
 

मिटा दूँ तुम्हारा चुंबन अपने बदन से,
और अपनी उम्र घटाने की सोचता हूँ।
 

मैं भूल जाऊँ तुमसे की हर मुलाकात,
तो अपनी हस्ती मिटाने की सोचता हूँ।
 

ला कर धूप तुम्हारी परछाई तक पर,
अपनी शनासाई छुपाने की सोचता हूँ।
 

तुम्हें बद्दुआ देना भी तो गँवारा नहीं,
वर्ना अपनी लाश उठाने की सोचता हूँ।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
902
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com