यूँ ही कातिल के हाथ में खंज़र नहीं आता सलिल सरोज
यूँ ही कातिल के हाथ में खंज़र नहीं आता
सलिल सरोजइस तिश्नगी का कोई हल नज़र नहीं आता,
मेरा कोई रास्ता भी तो तेरे घर नहीं आता।
जिसे छोड़ दिया, उसे बस छोड़ ही दिया,
फिर से मनाने का हमें हुनर नहीं आता।
वो दरिया है तो उसे मौजों का गुरूर है,
हम समंदर हैं, हमें भी सबर नहीं आता।
जो दिया है, उतना ही वापस मिलता है,
सूखे पेड़ों पर कभी गुल मोहर नहीं आता।
जब से सियासत मिली है जंगल की उसे,
फिर कोई दूसरा जानवर नज़र नहीं आता।
नीयत खराब ना हो तो कुछ नहीं होता,
यूँ ही कातिल के हाथ में खंज़र नहीं आता।