दर्द बहता रहे तो अच्छा है सलिल सरोज
दर्द बहता रहे तो अच्छा है
सलिल सरोजअच्छा होता है
दर्द का बह जाना,
किसी उच्छृंखल नदी की तरह,
जो अपनी गति के साथ
बहा ले जाती है
कितने गदलों को
और धो जाती है
उन सभी विकारों को
जिसने अपने आस-पास
कभी कोई पुष्प नहीं खिलने दिया,
ना ही हवाओं की चोटी पर बिखरने दी
मधुमालती की खुशबू
और ना ही ज़मीन के सीने पर
सजाने दिए दुल्हन के धानी वस्त्र।
दर्द के बहने से
सिर्फ पुरानापन जाता ही नहीं
अपितु नए का निर्माण भी होता है,
जो कि नियमानुसार होते भी रहना चाहिए,
सृष्टि की नैसर्गिकता
और मानव के मानव होने की अमिट परिभाषा
की बुनियादी जरूरतों के लिए।