आईना सलिल सरोज
आईना
सलिल सरोजमैं अपनी ही परछाई देखकर डर गया,
मेरे खुदा होने का खुमार यूँ उतर गया।
मैं ज़रूरत से ज़्यादा कुछ भी तो नहीं,
यही अहसास हुआ, जब भी घर गया।
मैं जिंदा हूँ तो लोगों को दिखता क्यों नहीं,
कुछ तो था मुझमें ऐसा जो अब मर गया।
जो सिखाता रहा मुझे कि सच बोला करो,
जब सच बोला तो न जाने वो किधर गया।
माँ से कहा था कि कमा के लौट आऊँगा,
माँ खोजती रहती है, बेटा न जाने किस शहर गया।
वक्त था कि लोग कसमें खाते थे मेरे नाम की,
सबने कहा कि वो एक हादसा था जो गुज़र गया।