त्रिलोचन

जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कठघरा चिरानी पट्टी में जगरदेव सिंह के घर 20 अगस्त 1917 को जन्मे त्रिलोचन शास्त्री का मूल नाम वासुदेव सिंह था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए अंग्रेजी की एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की डिग्री प्राप्त की थी।

उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से बनारस विश्वविद्यालय तक अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालांकि उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था, भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे। जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने अपने सुपुत्र अमित प्रकाश सिंह के परिवार के साथ हरिद्वार के पास ज्वालापुर में बिताए। अंतिम वर्षों में भी काफी जीवंत रहे। वार्धक्य ने शरीर पर भले ही असर डाला था पर उनकी स्मृति या रचनात्मकता मंद नहीं पड़ी थी।

9 दिसंबर 2007 को ग़ाजियाबाद में उनका निधन हो गया।

लेखन शैली

कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।

प्रमुख कृतियाँ
क्रम संख्या कविता का नाम रस लिंक
1

पवन शान्त नहीं है

अद्भुत रस
2

सह जाओ आघात प्राण

वीर रस
3

परिचय की गाँठ

शृंगार रस
4

एक लहर फैली अनन्त की

शांत रस
5

आदमी की गंध

अद्भुत रस
6

स्पष्टीकरण

करुण रस
7

हाथों के दिन

अद्भुत रस
8

उनका हो जाता हूँ

अद्भुत रस
9

दुनिया का सपना 

अद्भुत रस
10

प्राणों का गान

अद्भुत रस
11

चंचल पवन प्राणमय बंधन

शांत रस
12

आत्मालोचन

शांत रस
13

उठ किसान ओ

अद्भुत रस
14

अगर चाँद मर जाता

शांत रस
15

सब का अपना आकाश

शांत रस
16

त्रिलोचन चलता रहा

करुण रस
17

भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा कल

करुण रस
18

फेरु

अद्भुत रस
19

पीपल

अद्भुत रस
20

गाओ

शांत रस
21

आछी के फूल

शांत रस
22

लहरों में साथ रहे कोई

शांत रस
23

धर्म की कमाई

अद्भुत रस
24

वही त्रिलोचनहै

अद्भुत रस
25

तरूण से

वीर रस
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