जिजीविषा!  Vivek Tariyal

जिजीविषा!

प्रमिला को देखकर कह पाना मुश्किल था कि उसके जीवन में इतनी बड़ी आँधी आई होगी, जिसके बावजूद उसके चेहरे की हँसी बरक़रार थी, ये बात अलग है कि मन का सूनापन और ज़िन्दगी की थकावट देर सबेर हँसी के छद्म आवरण को चीर कर बाहर निकल आती थी, लेकिन प्रमिला बड़े ही सधे हुए तरीके से वापस उस हँसी को अपने चेहरे पर स्थापित कर लेती थी।

दरवाज़े पर काफी देर से कोई खटखटा रहा था, प्रभात की नींद जैसी ही टूटी वह तुरंत दरवाज़े की तरफ बढ़ा और दरवाज़ा खोलते ही कंपकंपा देने वाली ठण्ड से ठिठुरती हुई एक आकृति अंदर आते हुए बोली, बेटा इतनी देर क्यों लगा दी दरवाजा खोलने में, मैं तो सोच रही थी कि आज आपको कहीं ऑफिस जाने में देरी न हो जाए। ऑफिस में देरी होने की बात सुनकर प्रभात अपनी आधी नींद से जागा और तुरंत नहाने चला गया। रसोईघर रोज़ की तरह के शोर में डूब गया, कुकर की सीटी, बर्तन धोने की आवाज, पराठे सेंकने का धुँआ और इन सब के बीच अपने काम में मशगूल प्रमिला जो कि पिछले तीन महीने से प्रभात के घर में काम कर रही थी। उम्र बहुत ज़्यादा नहीं थी, यही कोई ३५-४० रही होगी, लेकिन प्रमिला को देखकर कह पाना मुश्किल था कि उसके जीवन में इतनी बड़ी आँधी आई होगी, जिसके बावजूद उसके चेहरे की हँसी बरक़रार थी, ये बात अलग है कि मन का सूनापन और ज़िन्दगी की थकावट देर सबेर हँसी के छद्म आवरण को चीर कर बाहर निकल आती थी, लेकिन प्रमिला बड़े ही सधे हुए तरीके से वापस उस हँसी को अपने चेहरे पर स्थापित कर लेती थी।
 

पूरा घर मानो प्रमिला की ज़िम्मेदारी था, कपड़े धोने से लेकर घर की साफ़-सफाई तक, खाना पकाने से लेकर घर का पूरा रख-रखाव प्रमिला के ज़िम्मे था। प्रभात जैसे ही नहा के बाहर आया, प्रमिला ने उसे नाश्ता दिया। आज उसके चेहरे पर कुछ नया था, काफ़ी सोच-विचार के बाद प्रभात ने पूछ ही लिया, " क्या बात है आंटी जी आज आप बाक़ी दिनों की अपेक्षा ज़्यादा ही खुश नज़र आ रही हैं ।" प्रमिला ने हँसते हुए जवाब दिया, " आज बेटी का रिजल्ट आने वाला है" और ये कहते हुए वह वापस अपने काम में मशगूल हो गई। लेकिन प्रभात के मन पर प्रमिला की वो ख़ुशी एक अजीब छाप छोड़ गई, आज उसे प्रमिला की मुस्कान में प्रमिला पास होती दिखाई दे रही थी।
 

अगले दिन प्रमिला काम पर नहीं आई। प्रभात ने फ़ोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला । प्रभात मन ही मन सोच रहा था आज  प्रमिला क्यों नहीं आई, कि तभी उसने देखा सामने से कोई लड़की उसके घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। उसने अपनी साइकिल प्रभात के घर के दरवाज़े के पास खड़ी की और सीधे अंदर आकर प्रभात से पूछा, "आप प्रभात भैया हैं न ? मेरा नाम लक्ष्मी है", जितने में प्रभात कुछ उत्तर दे पाता वो तुरंत रसोईघर में घुस गई और बर्तन धोते हुए बोली, "आज माँ को बुखार है, वो नहीं आ पाएगी तो मैं आपके लिए नाश्ता लगा देती हूँ आप तैयार हो जाइए" । "कल तुम्हारा रिजल्ट आया है न ?", प्रभात ने लक्ष्मी से पूछा। चेहरे पर मुस्कान के साथ लक्ष्मी बोली "हाँ भैया, कक्षा में तीसरा नंबर आया है।" वाह ! ये तो बहुत अच्छी बात है, फिर आगे क्या करने की सोची है? प्रभात के इस सवाल से मनो अभी तक उसके चेहरे पर जो हँसी थी अचानक गायब हो गई। लेकिन पूरा साहस  बटोर कर लक्ष्मी ने उत्तर दिया, "आगे भी पढ़ना चाहती हूँ, किन्तु मेरे लिए ये मुमकिन नहीं है" । इतना कहते ही लक्ष्मी की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन उसने तुरंत ही उन्हें पोंछा और प्रभात को नाश्ता लगा कर घर चली गई।
 

उसके आँसुओं ने प्रभात के मन पर गहरी छाप छोड़ दी, प्रभात पूरे दिन सोचता रहा कि क्या वास्तव में शिक्षा पैसों कि मोहताज है? आज समाज का एक सच यह भी तो है कि शिक्षा बेची जा रही है और जो इसे ख़रीद नहीं सकता वो इसे पाने के सपने देखने का हक़दार भी नहीं है। इस ख़याल से प्रभात का अंतर्मन विकल हो उठा। अगले दिन प्रमिला फिर काम पर आई और आते ही अपने ही अंदाज़ में कुछ कहती हुई फैले हुए घर को समेटने लगी।  प्रभात ने पूरा साहस बटोरा और प्रमिला से पूछा, "आगे कहाँ दाखिला दिला रहीं है लक्ष्मी को?"। यह सुनते ही झाड़ू लगाते हुए प्रमिला नीचे ही बैठ गई और कुछ देर के लिए शांत ही बैठी रही। उसने एक लम्बी साँस भरी और बोली, "मन तो है कि आगे पढ़ाऊँ लेकिन आगे की पढाई का खर्च उठा पाना मेरे लिए मुश्किल है। लक्ष्मी के लिए क्या-क्या सपने सजाए थे, लेकिन हालातों से मजबूर हूँ "। प्रभात ने उत्तर दिया, "मैंने लक्ष्मी के अंदर पढ़ने की तीव्र इच्छा देखी है और मुझे लगता है कि अगर उसे पढ़ाया जाए तो वह बहुत आगे निकल सकती है"। प्रमिला बड़े ही गौर से प्रभात की तरफ देखने लगी फिर मन ही मन कुछ सोचने लगी और अपने काम में व्यस्त हो गई।
 

प्रभात को प्रमिला का उत्तर न देना अजीब लगा और वह सोचने लगा कि बेवजह ही उसने प्रमिला की दुखती रग पर हाथ रख दिया। फिर माहौल को कुछ शांत करने के लिए बोल पड़ा, "आपकी स्वेटर तो बहुत अच्छी है, कहाँ से खरीदी है?", प्रमिला हँस पड़ी और बोली "मैं खुद ही स्वेटर बुनती हूँ भैया, ये स्वेटर मैंने ही बनाई है। तारीफ़ के लिए धन्यवाद। " यह सुनकर प्रभात के मन में एक विचार आया कि क्यों न प्रमिला के इस शौक को उसकी शक्ति बना दिया जाए। और जानने पर उसे पता चला कि प्रमिला सिलाई-कढ़ाई का भी काम बहुत अच्छा कर लेती है। प्रभात ने बुद्धि अश्वों को द्रुत गति से दौड़ाया और मन ही मन प्रमिला के सशक्तिकरण पूरा ढाँचा तैयार कर लिया। उसने यह विचार अपने बाक़ी दोस्तों को बताया तो सभी दोस्त जितना हो सके उतनी मदद करने के लिए तैयार हो गए। फिर कुछ दिनों के बाद प्रमिला के सुबह-सुबह घर आते ही उसने प्रमिला से पूछा, "आप इतना अच्छा सिलाई कढ़ाई का काम जानती हैं, फिर क्यों नहीं इसी काम को अपना व्यवसाय बना लेतीं ? " प्रमिला कुछ सोच में पड़ गई, ऐसा लगता था कि उसके मन में अनेकों विचार मानों समुद्र मंथन कर रहे हों। मन ही मन वह सोच रही थी कि क्या वास्तव में वह अपने शौक को व्यवसाय में परिवर्तित कर सकती है ? प्रभात मानों प्रमिला के मन को पढ़ रहा था, कुछ सोचने के बाद वह बोला "ये विचार मन में मत लाइये कि आपका काम किसी को पसंद आऐगा या नहीं, बस एक ही चीज़ का विचार कीजिए कि आप और कितना अच्छा कर सकती हैं, आप अगर स्वयं पर विश्वास करेंगी तभी लोग आप पर विश्वास कर पाएँगे। प्रमिला ने अपना पूरा साहस बटोरा और दृढ़ निश्चय के साथ इस काम को करने हेतु अपनी स्वीकृति दे दी। प्रभात और उसके दोस्तों ने मिल कर कुछ छोटी दुकानो में बात की और उन्हें प्रमिला द्वारा बनाई गई चीज़ों को उनकी दुकानों पर रखने हेतु मना लिया। अब अगर उनके रास्ते में कोई बाधा थी तो वह थी पूँजी। सभी ने मिलकर ऑफिस से दीवाली पर मिले बोनस का एक भाग इस काम की शुरुआत के लिए लगाने का फैसला किया। करीब एक हफ़्ते बाद वो सभी तैयारियों के साथ प्रमिला के घर पहुँचे। प्रभात ने प्रमिला को सब कुछ बताया, यह सुनते ही प्रमिला की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, आँसू पोंछते हुए वह बोली, "आज मुझे विश्वास हो गया है कि आज भी समाज में लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए सज्ज रहते हैं, ईश्वर आप सभी को जीवन के सभी सुख दे ऐसी मैं ईश्वर से कामना करती हूँ । "
 

प्रमिला ने सिलाई कढ़ाई का काम घर पर रह कर करना शुरू कर दिया साथ ही वह प्रभात के घर पे भी काम करती रही। अगले दिन प्रमिला काम करने आई और पूरा घर फिर रसोईघर के शोर-शराबे में डूब गया। प्रभात तैयार होकर नाश्ता करने बैठा, प्रमिला गरम-गरम पराठे ले आई। प्रभात को आज उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति दिखाई दे रही थी। संतोष और संकल्प उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहे थे। कुछ दिनों में ही प्रमिला ने कई डिज़ाइन की स्वेटरें तैयार कर ली। प्रभात और उसके दोस्तों ने उन स्वेटरों को कुछ विक्रेताओं को दे दिया और दाम निर्धारित कर लिए। प्रमिला की मेहनत रंग लाई, एक दो दिनों में ही उसकी बनाई हुई सभी स्वेटरें बिक गईं। प्रभात और उसके दोस्तों ने प्रमिला की पहली कमाई उसके घर जाकर प्रमिला को दी। अपनी पहली कमाई हाथों में लेते ही प्रमिला की आँखों से आँसू बहने लगे लेकिन ये आँसू लाचारी के नहीं थे, ये एक सशक्त महिला के आँसू थे जिनसे गर्व प्रस्फुटित हो रहा था। प्रमिला के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, प्रमिला को ख़ुद पर विश्वास हो गया था, वह लक्ष्मी को आगे पढ़ा सकती थी, वह अपना भविष्य खुद निर्धारित कर सकती थी  । उसने तहे दिल से प्रभात और उसके दोस्तों को धन्यवाद दिया, अपनी पहली कमाई से उसने और सामान खरीदा और सिलाई बुनाई के काम को अपना पेशा बना लिया। अपनी लगन मेहनत और विश्वास के बल पर प्रमिला ने अपनी बेटी को पढ़ाया और फैशन डिज़ाइनर बनाया।
 

प्रमिला जैसी महिलाएँ हमें प्रेरणा देती हैं कि घोर अन्धकार में भी रौशनी की जा सकती है, समय कितना भी विषम हो ख़ुद पर विश्वास करने से हमें सफलता अवश्य हाथ लगती है। प्रभात जैसे लोग समाज के सभी लोगों को प्रेरणा देते हैं कि एक दूसरे की मदद करके हम दूसरों के जीवन में उजाला ला सकते हैं और यही समाज का हृदय है और यही भाव हम सभी को जोड़े रखता है।

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