देव-साक्षी Kuldeep Kriwal
देव-साक्षी
यह कहानी सामाजिक परम्पराओं व रूढ़िवादी मान्यताओं की बेड़ियों को तोड़ने को प्रेरित करती है। आखिर कब तक हम इन बेड़ियों से जकड़कर खुद का दम घोंटते रहेंगे, इन सबसे खुद को ही बाहर निकालने की हिम्मत जुटानी होगी।
जब से शिक्षक प्रशिक्षण के लिए मैंने इस कॉलेज में प्रवेश लिया है तब से मैं उस देव के उद्दंड व अमर्यादित व्यवहार को सुनता व देखता आ रहा हूँ। आए दिन उस कॉलेज में उसके झगड़े व मारपीट रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं । कॉलेज में रैगिंग नहीं थी पर उसका अन्य लड़कों पर प्रभाव जमाने का रुतबा साफ दिखाई पड़ता था।
मुझे और मेरे मित्र दिनेश को उसका व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं था उसकी बदतमीजी, कटाक्ष करने व तंज कसने के मुद्दे उठते ही रहते थे। कॉलेज के ज्यादातर छात्र उसकी हरकतों से परेशान ही रहते थे।
कुछेक चंगेजी हरकतों वाले चापलूस ऐसे ही उद्दंडो के परम मित्र हुआ करते हैं इन्हीं फुदकते कूप मंडूकों की वजह से जल में रहने वाला कछुआ भी अपने को बड़ा व सुरक्षित महसूस करता है, यही बात उस देव के लिए सटीक बैठती थी।
एक दिन कॉलेज में सांस्कृतिक कार्यक्रम था साक्षी के अलावा सभी लड़कियाँ अच्छी-अच्छी साड़ी पहन कर आईं थी, सभी अपनी सुंदरता की श्रेष्ठता को साबित करने में लगी थीं जबकि साक्षी में सादगी, संयमित व्यवहार व अल्पभाषी आदि सभी गुण उसमें पराकाष्ठा तक पहुँचे हुए थे।
देव ने उस दिन उसके कपड़ों पर इतनी बातें बनाई और उसे अकारण ही हँसी का पात्र बना दिया। देव के लिए भले ही वह साधारण बात रही होगी मगर साक्षी के लिए हृदय में कोई शूल चुभोने जैसी थी। उस दिन से वह कॉलेज जाने में कतरा रही थी। पाँच-छह रोज गुजर गए। देव को एक दिन लगा कि साक्षी उस दिन के बाद कॉलेज में दिखाई न दी, थोड़ी चिंता सी हुई उसने उसकी प्रिय सहेली नैना से पूछा कि - साक्षी कुछ दिनों से कॉलेज क्यों नहीं आ रही है ?
नैना एक बार तो उसके मुँह लगना नहीं चाह रही थी वह जाने ही लगी थी तभी एकाएक रुक के बोली - तुम्हारा नाम देव किसने रखा ? तुम्हारा नाम देव नहीं, कोई राक्षस होना चाहिए था। तुम्हारी वजह से आज साक्षी कॉलेज में नहीं आ रही। उसके बारे में तुम आखिर जानते ही क्या हो ? देव थोड़ा हतप्रद होकर उसे सुन रहा था। नैना बोली - एक लाचार और बेबस विधवा का मजाक उड़ाकर तुम्हें शांति मिल गई?
देव यह सब सुनकर एकदम चौंक सा गया, वह धीरे से बोला - विधवा.. ? नैना प्रति उत्तर में बोली- हाँ, वह एक विधवा है बचपन में खेलने खाने की उम्र में शादी हुई थी अभी एक साल पहले गौना हुआ था। महीना भर भी गुजरा न था कि उसके पति की एक हादसे में अचानक मौत हो गई, घर वालों का एक ही बेटा था। दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा ऊपर से नई नवेली बहू को इस अवस्था में छोड़ के जाना उन सब के लिए गहरा सदमा था।
लड़के के पापा बोले, बेटा तो चला गया अब तुम किसके सहारे जिओगी तुम भी अपने घर जाकर दूसरी शादी कर लो। साक्षी अभी उस दु:ख से उबरी भी नहीं थी कि इन बातों से और अधिक पीड़ा हुई।
साक्षी बोली - मम्मी - पापा जी मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊँगी, मेरी किस्मत में जो लिखा है वह मैं झेलूँगी, मैं आपका सहारा बनूँगी...मैं भी पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती हूँ और आपकी सेवा करना चाहती हूँ। साक्षी की ज़िद के आगे किसी की न चली, उसने ग्रेजुएशन तो कर रखा है अब उसने इस कॉलेज में शिक्षक प्रशिक्षण के लिए प्रवेश लिया है। ये सब बातें नैना ने एक साथ बोल दीं। यह सब सुनकर देव पसीने से तरबतर हो गया। नैना तो चली गई थी लेकिन देव निष्प्राण होकर कॉरिडोर कि सीढ़ियों पर जम सा गया। शाम को कॉलेज से घर जाते समय देव नैना से बोला - मैं साक्षी से माफी माँगना चाहता हूँ, कल उसे कॉलेज लेकर आ जाना।
नैना बिना बोले चली गई लेकिन अगले दिन साक्षी को समझा-बुझाकर कैसे भी करके कॉलेज ले आई। देव साक्षी से नज़र न मिला पा रहा था, उसे दूर से ही देख रहा था, वह उसे अब बार-बार देखा करता था। वह उस दिन से एकदम बदल गया, जो लड़का अपनी उद्दंडता व बड़बोले स्वभाव के लिए प्रसिद्ध था आज उसमें माफी माँगने की भी हिम्मत नहीं थी। अब देव साक्षी की जाने-अनजाने रूप में मदद करने लगा, काउंटर पर फीस जमा कराने गई तो काउंटर पर उससे बोला गया कि आपकी फीस जमा हो चुकी है। साक्षी हैरत में पड़ गई थी कि आखिर उसकी कौन मदद कर रहा है। देव उसके सामने आने से बच रहा था, वह उसके लिए दिन-रात चिंतित रहने लगा।
एक दिन कॉलेज की बालकनी में देव और साक्षी का आमने-सामने से आना हुआ देव साक्षी को देखते ही एक जगह स्थिर हो गया और साक्षी चुपचाप निकल गई। साक्षी भी देव में यह सब परिवर्तन देख कुछ सोच में पड़ गई थी कि कैसे यह इतना बदल चुका है। देव अब साक्षी को अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देना चाहता था, साक्षी उसके हृदय में अब किसी देवी की छवि की भांति आरूढ़ हो गई थी अब उसका ध्यान सिर्फ साक्षी की तरफ रहता था।
साक्षी की सहेली नैना ने भी उसके बदलते व्यवहार की प्रशंसा की और कहा कि देव उस दिन से राक्षसी प्रवृत्तियों का त्याग कर उसके नाम के अनुरूप देव तुल्य व्यवहार करने लगा है। देव का उसे निरंतर देखते रहना और नज़रें मिलने पर देव का एकदम अचानक से यूँ झेंप जाना .... वह दृश्य साक्षी के हृदय में उथल-पुथल मचाने वाला होता था। देव की अच्छाइयाँ अब उसका दिल जीतने लगी थीं।
साक्षी का भी मन अब पुरानी मान्यताओं और सामाजिक रूढ़ियों से ऊब चुका था, वह अब इन बेड़ियों को तोड़ना चाहती है, वह भी प्रेम करना चाहती है, स्वतंत्र होकर जीवन बिताना चाहती है और सभी खुशियों के साथ जीना चाहती है। अब तक उसके जीवन में प्रेम क्या होता है उसके ऐसे संयोग नहीं बने थे। छोटी-छोटी खुशियाँ क्या होती हैं अब तक उसे पता नहीं थी, लेकिन अब वह समझ चुकी है कि स्त्री का जीवन प्रेम के बिना नीरस है।
इन्हीं मानसिक उथाहपथोहों के बीच साक्षी भी देव से अब काफी आकर्षित हो चुकी थी। ना चाहते हुए भी वह अब देव के आधीन हो गई। दोनों के बीच वार्तालाप के बादल भी छँट चुके थे, कब दोनों के दिलों के मध्य बिजली कड़की पता ही ना चला । दोनों सामाजिक बंधनों की परवाह न करते हुए अब एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे। अब वो इतना घुल-मिल चुके थे कि एक दूसरे के बिना रहना मुश्किल हो चुका था।
समय की गति पंख फैलाकर आगे बढ़ रही थी। प्रशिक्षण के दो वर्ष कब पूरे हुए पता ही नहीं चला। अब सब लोग बिछड़ गए थे। कॉलेज छोड़ते समय बस देव के लिए अपने मन को बदल चुका था उसके प्रति नफरत को अब मार चुका था।
मेरी नियुक्ति अध्यापक पद के रूप में दिल्ली में हो गई थी, खट्टी-मीठी यादों के सहारे जीवन कट रहा था, अचानक एक दिन मेरी नज़र फेसबुक की एक पोस्ट पर पड़ी जिसमें देव साक्षी की शादी का चित्र था। मैं हतप्रभ था क्योंकि मुझे लगा था कॉलेज के साथ छूटने के साथ ही उनके प्रेम का भी खात्मा हो गया होगा। अब मैं जिज्ञासा वश देव को फोन किया, देव ने बड़ी विनम्रता से मुझसे बात की, मुझे बड़ी खुशी हुई, मैंने देव से उसकी और साक्षी की शादी के कैसे हुई इस बारे में जानना चाहा।
देव ने बताया कि हम कॉलेज से अलग होने के बाद भी एक दूसरे को भुला न पा रहे थे, हमने एक साथ जीने-मरने की कसम खाई थी, चाहे हमारी राहों में कितने ही काँटे आएँ पर हम चट्टान की तरह मजबूत थे। इन्हीं कश्मकशों के बीच मेरा सब इंस्पेक्टर पोस्ट पर जयपुर में सलेक्शन हो गया था, इससे मेरी और हिम्मत बढ़ गई थी, मैं अब अपने प्यार पर समर्पण चाहता था इसी उत्साह से मैं एक दिन साहस करके साक्षी के घर पहुँच गया, उसके सास-ससुर के पास जाकर सारी स्थिति से अवगत करा दिया और कहा कि मैं साक्षी से शादी करना चाहता हूँ। साक्षी के ससुर को थोड़ा अजीब लगा मगर वह भी समझ सकता था कि साक्षी अपना पूरा जीवन अकेले नहीं बिता सकती, वो खुद उसके लिए एक अच्छा लड़का देख शादी कराने के मूड में था बस साक्षी की जिद की वजह से मन की बात अपनी जुबां पर नहीं ला सका।
साक्षी के ससुर ने कहा, बेटा हमें शादी के लिए कोई एतराज नहीं है और नहीं कोई समाज की परवाह है बस एक ही चिंता है कि क्या तुम साक्षी को पूर्ण रूप से स्वीकार करोगे ? कभी समाज के ताने सुन कर साक्षी के साथ पूर्ण न्याय कर पाओगे? इतना सुनकर मैं उनके पैरों में गिर पड़ा और रोते हुए उन्हें आश्वस्त कर वचन दिया कि मैं साक्षी को अपने से जुदा नहीं करूँगा, ना ही मैं कभी समाज के बंधनों व रूढ़ियों की परवाह करूँगा।
मेरे बहते आँसू और साक्षी के प्रति प्रेम को देखते हुए उन्होंने साक्षी का हाथ मेरे हाथ में सौंप दिया और हमारी धूमधाम से शादी कर दी। अब मेरे दो परिवार हैं, मैं उनके इकलौते पुत्र की कमी को भी पूरा कर रहा हूँ और आज हम सभी अपना खुशी से जीवन यापन कर रहे हैं, ऐसा कहकर देव ने अपनी बात खत्म की।
करीब डेढ़ साल बाद मैंने फिर फेसबुक पर एक पोस्ट में चित्र देखा जिसमें देव व साक्षी के साथ एक नवजात शिशु भी था, मैं उनके हँसते-खेलते बढ़ते हुए परिवार को देखकर सोचने लगा कि सच में इस युग में भी देव निवास करते हैं जो साक्षी जैसी कितनी ही असहाय लड़कियों के लिए देव बनकर पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। देव और साक्षी की खुशियों को देखकर मैं भी अब बहुत खुश था। देव ने सामाजिक रूढ़िवादी व्यवस्था के खिलाफ जाकर एक देवता होने का प्रमाण दिया है, उसके इस कृत्य ने सदा के लिए सबके दिलों में जगह बना ली। इस विजय के लिए साक्षात देव भी उसके देवत्व के साक्षी हैं।