मुँह बोली बहन VIKAS UPAMANYU
मुँह बोली बहन
इस कहानी के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया गया है कि हम कैसे पराए को भी अपना बना सकते हैं
रोज़ की तरह राज ऑफिस के लिए निकला और ऑफिस में जाकर अपने काम में व्यस्त हो गया। अगले चार दिन ऑफिस का अवकाश था तो राज ने चंढीगढ़ घूमने का मन बनाया और अपने जाने का टिकट बुक कर दिया। अगले दिन समय से पहले प्लेटफॉर्म पर पहुँच कर अपनी ट्रेन की सीट पर जाकर बैठ गया और अखबार पढ़ने में व्यस्त हो गया। मौसम पहले से ही खराब था, कुछ देर बाद काली घटाओं के साथ बारिश होने लगी। तभी उसने देखा कि उसके सामने बाली सीट पर एक लड़की बैठी है जो थोड़ी डरी और सहमी हुई सी लग रही थी। उसी डिब्बे में तभी पाँच छ लड़के मस्ती करते एवं एक दूसरे पर फब्तियाँ कसते हुए आए। उनको आता देख वो लड़की और भी डर रही थी, उस लड़की की और देखते हुए राज ने कहा, "मैं राज और आप?"
अकेली डरी असहज लड़की ने झेंपते हुए कहा, "जी मैं"
ये शब्द सुनते ही राज ने कहा कि कोई बात नहीं
कहाँ जा रहे हो आप?
डरे स्वरों में लड़की ने कहा "जी मैं अम्बाला"
राज के मुँह से एक दम निकला - "क्या अम्बाला?"
वहाँ तो मेरी बहन रहती है और इस तरह तो आप भी मेरी बहन हुए। अब दोनों में बातचीत होने लगी। अम्बाला के बारे में बहुत सी बातें की, धीरे-धीरे उस लड़की का डर कम होने लगा। एक दूसरे से बातें करते-करते रात हो गई और वो लड़की राज के कंधे पर सिर रख कर सो गई। जैसा कोरा राज का मन था वैसे ही कोरी रात गुज़र गई। सुबह होते ही उस लड़की की आँख खुली और बोली भैय्या मेरा नाम कल्पना है आप मेरा नंबर और पता ले लीजिए, आप जब भी अपनी बहन से मिलने अम्बाला आओ तो अपनी इस बहन के घर भी ज़रूर आना। लड़की की यह बात सुनते ही राज ने कहा, "कौन सी बहन और कौन सा बहन का घर।" राज ने कहा कि मेरी कोई बहन अम्बाला में नहीं रहती है, वो तो मैंने कल आपको अकेला एवं डरा हुआ महसूस करते देखा तो ऐसे ही रिश्ते बनाता रहा। ये सुनते ही कल्पना हक्की-बक्की रह गई। अब राज ने कल्पना की ओर देखते हुए बोला, "क्या हुआ? मेरी कोई बहन अम्बाला में नहीं रहती थी लेकिन कल्पना अब मेरी बहन आप हो। और हाँ बहन. सब लड़के एक जैसे नहीं होते है जो लड़की को देखते ही गलत विचार अपने मन में लाते हों, हम भी किसी के भाई, पिता या चाचा हैं।"
अब राज ने कल्पना की ओर देखा और बोला, "तुम मेरी मुँह बोली बहन हो और जब तक मेरा जीवन रहेगा तब तक ये भाई आपके साथ है।" यह सुनते ही कल्पना को लगा कि मानो उसका सगा भाई उसको मिल गया हो। कल्पना नम आँखों से राज के गले मिली और बोली, "भाई सब लोग आपके जैसी सोच वाले हों तो एक लड़की कभी भी असहज महसूस नहीं कर सकती है।" ऐसा बोलते हुए लड़की ने राज को धन्यवाद दिया और बोला, "भैया आप जल्दी ही अपनी इस बहन से मिलना।"
मैं आपको बताना चाहता हूँ कि राज और कल्पना आज भी भाई बहन के इस पवित्र रिश्ते को अच्छे से निभा रहे हैं और सगे भाई बहनों से भी ज्यादा दोनों में प्यार देखने को मिलता है। मेरा इस कहानी से आशय इतना ही है कि कभी किसी की मज़बूरी या कमजोरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए। एक बार रिश्ते बना कर तो देखिए कैसे पराए भी अपनों से ज्यादा सगे हो जाते हैं। एक बार लड़की को सम्मान दे कर तो देखिये कितना सुकून मिलेगा जीवन में, अगर सच में ऐसा हो जाएगा तो हमारी माता-बहनें कभी भी, कहीं भी आने जाने से भयभीत नहीं होंगी।
एक सम्मान माता-बहनों के नाम।