दो ख़त Govind Singh Verma
दो ख़त
आधुनिक बनने और समाज को दिखाने के लिए आज का युवा वर्ग अपने माता-पिता के विचारों के साथ-साथ उनके सम्मान को भी ठेस पहुँचाने लगा है। यह कहानी दो दोस्तों के प्रेम और शर्मा जी के बेटे के इर्द-गिर्द घूमती है। शर्मा जी अपने पुत्र मोह को त्याग गए, कारण था अपने मित्र के प्रेम और वादे को न त्याग सके।
"सारा गाँव आप पर थू-थू कर रहा है, आपको अपनी इज्ज़त की परवाह नहीं है तो हमारी इज्ज़त का तो ख्याल रखिए। आप इस उम्र में उस विधवा के घर क्यों जाते हैं, ऐसा क्या देती है वो आपको? थोड़ी शर्म कीजिए ! "- अपने बेटे के कड़वे शब्द और तेज़ आवाज़ सुनकर शर्मा जी अंदर ही अंदर टूट गए। कुछ भी बोला नहीं, चुपचाप अपने कमरे में चले गए। बाहर से बेटे-बहू की आवाज़ सुनाई दे रही थी, अपना ध्यान उनकी बातों से हटाने के लिए शर्मा जी ने एक ख़त खोल लिया और पढ़ने लगे।
प्यारे शर्मा,
मुझे मालूम है तुझे जब यह पत्र मिलेगा मेरी अस्थियाँ गंगा में बह चुकी होंगी। पर तुम मेरे भाई जैसे हो, ज़िन्दगी की हर जंग में तुमने मेरा साथ दिया है। जबसे भाभी नहीं रही तबसे तुम्हारे बेटे-बहू ने तुम्हारा कितना ख़्याल रखा है मुझे मालूम है। तुम्हारे पसंद की भिंडी की सब्जी भी नहीं खाने देते तुम्हें। अपनी किडनी की बीमारी से मैं हार चुका हूँ। तुम्हारे कंधे पर कुछ बोझ रखकर जा रहा हूँ। मेरे जाने के बाद मेरी पत्नी और बेटी का ध्यान रखना। बेटी की शादी के लिए पैसे मैंने रख दिए हैं पर उन्हें सहारा चाहिए, तुम उनका सहारा बनना। जब गुड़िया का रिश्ता हो तब तुम साथ रहना, मेरी बेटी के कन्यादान की जिम्मेदारी तुम्हें सौंप रहा हूँ। दिन में एक बार मेरे घर जरूर जाना, मेरी पत्नी तुम्हें अपना दुःख नहीं बताएगी परन्तु तुम्हारा वहाँ होना मेरे परिवार को हिम्मत देगा। बस इतना कर देना मेरे भाई। मुझे मालूम है यह सब करने पर तुम्हारे ऊपर लोग कीचड़ उछालेंगे, तुम्हारी इज्जत ख़राब हो जाएगी, पर मेरा परिवार बच जाएगा। मेरे भाई बस इतना कर देना, तुम एक सच्चे दोस्त हो और सच्चे दोस्त कहलाओगे।
शर्मा जी ने नम आँखों से पत्र को बंद किया और बाहर निकले, बेटे ने फिर कहा - "पिताजी आपने मेरी इज्जत ख़राब कर दी। मेरे दोस्त यहाँ आने से कतराते हैं, आपको ज़रा भी शर्म हो तो अब उस औरत के यहाँ मत जाना। हमें समझ नहीं आता आपका रिश्ता क्या है उस औरत से? क्यों जाते हैं वहाँ बार-बार ? वो आगे भी कुछ बोलना चाहता था परंतु शर्मा जी बीच में ही बोले - "माफ कर दे बेटे, कल से तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा।" इतना कह कर वो बाहर निकल गए पर कानो में बहू के शब्द - "चरित्रहीन" गूँजते रहे।
शाम को शर्मा जी घर नहीं आए, जब अगले दिन भी वो घर नहीं आए तो बेटे ने पुलिस को सूचना दी। पता चला कि वो एक शादी में गए थे। इसके बाद उनका कोई पता नहीं चला। बेटा-बहू दुःखी थे, आशंका थी कहीं आत्महत्या तो नहीं कर ली ? उनके कमरे में जाने पर टेबल पर दो ख़त मिले - पहला उनके दोस्त का और दूसरा जो उन्होंने कल लिखा था। उनके बेटे ने जब पहला खत पढ़ कर पूरा किया तब उसकी आँखों में आँसू थे, उसने दूसरा ख़त पढ़ना शुरू किया -
प्यारे बेटे,
मुझे माफ़ करना मैंने तुम्हारी इज्ज़त ख़राब कर दी। मैं कर भी क्या सकता था, तुम्हें समझाने की कोशिश तो की थी पर तुम और समाज समझ नहीं पाए। खैर मैंने अपने दोस्त के परिवार का ख्याल रखा इसके लिए मैं बहुत खुश हूँ। कल उसकी बेटी की शादी है, यह आख़िरी दिन होगा, इसके बाद तुम्हें अपने चरित्रहीन बाप का चेहरा नहीं देखना पड़ेगा। एक बात और बेटा, मैं आत्महत्या बिल्कुल नहीं करने वाला, पुलिस वरना तुम्हें परेशान करेगी। बस बेटा इतना ही।
शुभाशीष
तुम्हारा पिता
शर्मा जी का कहीं पता नहीं चला, उनके बेटे के पास विरासत में दो ख़त रह गए थे।