धर्म  VIVEK ROUSHAN

धर्म

धर्म का इस्तेमाल यदि गलत मानसिकता से किया जाता है तो वो लोगों को बेसहारा कर देता है, जबकि धर्म का सही इस्तेमाल लोगों को सहारा देता है। अनेक लोगों के अनेक धर्म हो सकते हैं पर इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है।

रमेश का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। जब रमेश छोटा था तो उसने अपने घर को फूस का देखा था और जब बड़ा हो गया तब रमेश के घर में ज़रूरत की सारी चीज़ें उपलब्ध थीं। गाँव में जो फूस के घर थे वो अब ईंट के हो गए थे और शहर में भी उसका अपना घर था। ये सब कोई चमत्कार से नहीं हुआ था बल्कि ये सब रमेश के दादाजी और उसके पिताजी के साठ सालों की मेहनत का नतीजा था। रमेश के दादाजी ने लोहे की फैक्टरियों में काम कर के अपने जिस्म को गला के, रमेश के पिताजी को पढ़ाया था और एक बड़ा अफसर बनाया था जिससे आज रमेश का परिवार अच्छे हालात में था। घर के अच्छे हालात की वजह से रमेश को अच्छी तालीम मिली थी, रमेश ने अच्छे स्कूल से दसवीं और इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की थी। रमेश पढ़ने में अच्छा विद्यार्थी था, उसने बी.टेक करने के लिए कम्पटीशन दिया था जिसमें उसका चयन हो गया था। रमेश बी.टेक करने के लिए एन.आई.टी जमेशदपुर चला गया। रमेश बहुत चीज़ें किताबों में पढ़ कर बड़ा हुआ था, अच्छी चीज़ें सीखने की लालसा ने रमेश को हर चीज़ बारीकी से समझने और जानने का हुनर दे दिया था। रमेश ने अपनी दसवीं की पढाई एक क्रिस्चियन स्कूल से की थी जिसमें उसके सभी धर्मों के दोस्त हुआ करते थे। रमेश सब इंसानों को एक मानता, किसी को ऊँच-नीच के भेदभाव से न देखता। उसके हिन्दू भी दोस्त थे, मुस्लमान भी थे और क्रिस्चियन भी थे। रमेश हर जगह किताबों में यही पढ़ता कि सब इंसान एक हैं, धर्म के नाम पर, जात-पात के नाम पर इंसानों का बँटवारा करना गलत है और इन्हीं बातों पर अमल भी करता।

जब रमेश बी.टेक के फाइनल ईयर में था तब उसके देश में हुकूमतों का बदलाव हो गया था। हुकूमतें बदली थीं पर हुकूमत अपने साथ नफरत भी लेकर आई थी, नफरत एक खास समुदाय के खिलाफ, नफरत देश में वर्षों से रह रहे कुछ लोगों के खिलाफ। अचानक से देश का माहौल बदल रहा था, देश में बहुत हलचल थी। अचानक से बदलते समाज के वातावरण को देखकर रमेश आश्चर्यचकित था, रमेश समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसके आसपास क्या बदल गया हैं जिससे लोगो में, समाज में नफरत का माहौल उत्पन्न हो गया हैं। रमेश जहाँ भी जाता लोग धर्म-अधर्म पे बात करते मिल जाते, किसी धर्म को ऊँचा किसी धर्म को नीचा कहने वाले लोग मिल जाते। रमेश के कॉलेज के बहुत सारे दोस्त भी धर्म-अधर्म के बारे में चर्चा करते रहते, टीवी पर, सोशल मीडिया पर, हर जगह धर्म-अधर्म की बातें ज़ोरों पर थीं। किसी दोस्त के घर जब रात को पार्टी पर जाता वहाँ भी लोग धर्म-अधर्म पर ही चर्चा करते रहते। रमेश अब इन सब चर्चाओं से ऊब चूका था, बहुत डिप्रेस हो गया था अपने समाज को देख कर। समाज में उतपन्न हो रहे किसी एक वर्ग के खिलाफ नफरत से वह बहुत परेशान था। इस परेशानी से निकलने के लिए रमेश ने धर्म के बारे में जानने की कोशिश की, उसने बड़े-बड़े लेखकों को, धर्मगुरुओं की बातों को पढ़ा, इन सब को पढ़ने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सभी धर्मों की एक ही शिक्षा है कि सब इंसान बराबर हैं। पर वह यह नहीं समझ पा रहा था कि समाज में धर्म को लेकर इतनी अलग-अलग धारणाएँ क्यों हैं? इन्हीं सवालों से परेशान होकर रमेश अपने कॉलेज के बगल के पार्क में जाकर बैठा हुआ था, रमेश अपने समाज को बहुत सारी बातें बताना चाहता था इसलिए वह घुट रहा था और इन सब सवालों से परेशान था। रमेश पार्क में चुप-चाप बैठा हुआ था और पार्क के मेन गेट के सामने गुब्बारा बेच रहे गुब्बारेवाले को देख रहा था। गुब्बारेवाले के पास हरे-पीले-नीले हर रंग के गुब्बारे थे और उसको बहुत सारे बच्चों ने घेर रखा था और बहुत सारे बच्चे गुब्बारे खरीद रहे थे। तभी रमेश ने एक बच्ची को लिए भिखारन को देखा जो गुब्बारेवाले के बगल में बैठी हुई थी। दूसरे बच्चों को गुब्बारे लेते देख भिखारन की बेटी ने भी गुब्बारे लेने की इच्छा दिखाई, बच्ची अपनी माँ से गुब्बारे लेने को बोल रही थी पर उसकी माँ के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अपनी बच्ची को गुब्बारा दिलवा सकती थी इसलिए अपनी बच्ची को रोते-बिलखते देख भिखारन से रहा नहीं गया और वो अपनी बच्ची को वहाँ से लेकर जाने लगी। तभी रमेश के मन में न जाने क्या सूझा कि वो झट से पार्क के बाहर आया, गुब्बारेवाले से एक पंद्रह रुपये का गुब्बारा ख़रीदा और जाकर भिखारन की बच्ची को दे दिया। गुब्बारे को देखते ही बच्ची की आँख में चमक और होठों पर हँसी आ गई थी, भिखारन के होठों पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ गई थी। रमेश गुब्बारा देकर, बच्ची के सर को टटोलकर वहाँ से चला गया। जब रमेश रास्ते में जा रहा था तब अचानक उसके मन के अंदर एक अजब सी शांति का प्रवाह हुआ, वो अंदर से शान्त हो रहा था, मानो उसके सारे सवालों का जवाब उसको मिल गया था, उसको समझ आ गया था कि असली धर्म और हुकूमतों के बनाए धर्म में क्या अंतर है।

रमेश ने समझा कि हर छोटे को बड़ा करना ही असली धर्म है, किसी को क्षण भर की ख़ुशी देना ही असली धर्म है, किसी से प्यार से व्यवहार करना ही असली धर्म है, किसी के दुःख में साथ देना ही असली धर्म है, सभी धर्मों के लिए मन में जगह रखना ही असली धर्म है, इंसानियत को बढ़ावा देना ही असली धर्म है और इंसानियत से बड़ा इस दुनिया में कोई दूसरा धर्म नहीं है।

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