अंतर्द्वंद्व  Neelam Kushwaha

अंतर्द्वंद्व

नलिनी ने सिद्धांत से कोर्ट- मैरिज़ की थी। उसके मन में अंतर्द्वंद्व चल रहा था कि वो इन पाँच सालों में उसके साथ जो कुछ भी हुआ है वो अपने घरवालों को बताए या नहीं? बताए तो कैसे? एक दिन अचानक मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल पर आवाज़ आई की पापा हॉस्पिटल में भर्ती हैं तुम ज़ल्दी आ जाओ।

बालकनी में शाम की गरमागरम चाय की चुस्कियाँ लेते हुए नलिनी, सामने के पेड़ पर बैठी चिड़िया के मातृत्व भाव के समर्पण को बड़े गौर से देख रही थी। वह चिड़िया अपने छोटे-छोटे बच्चों के मुँह में दाना खिला रही थी। नलिनी ये सब देखते-देखते कब अपनी यादों के गहरे समंदर में गोते लगाने लगी, उसे पता ही नहीं चला। वह सोचने लगी कि प्रकृति भी कितनी अजीब है, इसने ब्रह्माण्ड की प्रत्येक माँ को मातृत्व की ज़िम्मेदारी दी हुई है, फिर चाहे वह पक्षी हो, जानवर हो या इंसान। प्रत्येक माँ अपने कर्तव्य को निःस्वार्थ भाव से पूरा करती है। केवल इंसान ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी ज़िम्मेदारी को मोह और स्वार्थ की चादर में लपेटकर निभाता है।

नलिनी की शादी को पाँच साल पूरे हो गए हैं। उसकी एक छोटी सी दुनिया में केवल दो लोग हैं - उसका पति सिद्धांत और एक प्यारी से बेटी। बेटी की मासूम मुस्कुराहट, नलिनी के सारे दुखों पर एक कारगर औषधि का काम करती। नलिनी जब भी बेटी की ओर देखती, उसे लगता कि वह अपना मातृत्व धर्म अच्छे से नहीं निभा पा रही है। माँ-पापा को उनके नाना–नानी बनने की खबर तक नहीं है। कॉलेज के एक सीनियर ने विवाह-प्रस्ताव दिया है, सिर्फ इतना बताने पर ही बहनों ने नलिनी से सारे रिश्ते-नाते तोड़ दिए थे। बहनों के वो आखिरी शब्द नलिनी के कानों में आज भी गूँजते हैं, “भगवान तेरी जैसी बेटी और बहन किसी को न दे, तू हमारे लिए मर चुकी है।" नलिनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पापा बहुत पुराने ख्यालों वाले थे। उधर सिद्धांत के घरवाले उस पर शादी के लिए मानसिक दबाव बनाने लगे थे। इसी बीच नलिनी की परीक्षा का केंद्र जबलपुर में आया था। इसी शहर में सिद्धांत के भैया-भाभी रहते थे। वे लोग नलिनी से मिलने आए और अचानक की पूछा- शादी कब करनी है? परीक्षा की टेंशन और हड़बड़ाहट में नलिनी ने कहा – “साल दो साल तो नहीं।" सिद्धांत के बड़े भाई ने वायदा किया कि ठीक है। नलिनी को वक्त मिल चुका था अपने घर में सब कुछ ठीक करने के लिए।

वक्त ने इतनी तेजी से करवट ली कि नलिनी ने सिद्धांत के दबाव में आकर कोर्ट-मैरिज़ कर ली। नलिनी ने ये शर्त रखी कि इसके बाद वह पारम्परिक तौर-तरीके से भी शादी करेगी। इस बात के लिए सिद्धांत के माता-पिता और भाई-भाभी ने हामी भर दी थी। कोर्ट- मैरिज़ के तुरंत बाद ही सिद्धांत के भाई-भाभी ने पूरे ससुराल में शादी का ढिंढोरा पीट दिया। नलिनी ने जब ये बात सिद्धांत से कही तो उसने कहा कि वो बड़े हैं मैं उन्हें कुछ नहीं बोल सकता। सिद्धांत के घरवाले कोर्ट- मैरिज़ में आ सकते थे लेकिन नलिनी के घरवालों को विवाह-प्रस्ताव नहीं दे सकते थे क्योंकि उन्होंने लड़का पैदा किया था।समाज में लड़के के माँ-बाप कभी लड़की के घरवालों से अनुरोध नहीं करते बल्कि आदेश देते हैं। शादी की बात सबको बता दी गई थी - ससुराल में, नलिनी के ऑफिस में और सिद्धांत के ऑफिस में। किसी को अगर नहीं पता थी तो वो थे नलिनी के अपने घरवाले। ये सब देख नलिनी फूट-फूटकर रोई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे? नलिनी की हालत ऐसी थी जैसे काटो तो खून नहीं, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। माला के मोती बिखर चुके थे और भरोसे का धागा कमज़ोर हो चुका था।

नलिनी ने अपने दोस्तों, लोगों, ऑफिस के स्टाफ और सोशल मीडिया से खुद को अलग कर लिया था। मानसिक अवसाद ने दिल में घर बना लिया था। उसने सिद्धांत को कुछ भी नहीं बताया। बताती भी क्यों, इन सबका ज़िम्मेदार वो ही तो था। सिद्धांत की पोस्टिंग ५०० किलोमीटर दूर थी। वह १५ दिन में एक बार आता था लेकिन पति होने का हक़ जाताना नहीं भूलता। सिद्धांत ने नलिनी से हर वो बात मनवाई जो नलिनी के आत्मसम्मान और आत्मा तक तो झकझोर देती थी। सिद्धांत नलिनी को अपने घर लेके गया। वहाँ पहुँचते ही उसे खरी-खोटी सुनाने की तैयारी पहले से ही की जा चुकी थी। गाँव की महिला मंडली में नलिनी के चरित्र का भद्दा वर्णन किया जा चुका था। नलिनी दिन भर खुश रहने का नाटक करती लेकिन रात का अँधेरा नलिनी के दिल और दिमाग को चीर देता था। उसने अपने पति से इस बारे में बात की लेकिन सिद्धांत का एक ही जबाब था – मेरे माँ-बाप, भाई-भाभी, बहन सब लोग अच्छे हैं और वे जो कुछ भी कर रहे हैं सब ठीक है। शादी के ११ महीने बाद नलिनी को एक प्यारी से बेटी हुई। वो माँ नहीं बनना चाहती थी लेकिन सिद्धांत ने प्रेगनेंसी का पता चलते ही हर किसी को बता दिया। नलिनी अकेली पड़ चुकी थी, अकेली से ज़्यादा हताश हो चुकी थी। नौकरी, पैसा, गाड़ी, घर सब कुछ था लेकिन उसके अपने ही साथ नहीं थे। एक उम्मीद के सहारे उसकी ज़िन्दगी चल रही थी वो थी उसके पापा का नियमित कॉल। कॉल पर वो पुरानी नलिनी बन जाती थी। इन पांच सालों में सिद्धांत ने सैकड़ों बार जताया कि उसने नलिनी से शादी करके उस पर उपकार किया है, कारण था कि नलिनी की बहनों की शादी अब तक नहीं हुई थी। उसके मन में अंतर्द्वंद्व चल रहा था कि वो इन पाँच सालों में उसके साथ जो कुछ भी हुआ है वो अपने घरवालों को बताए या नहीं? बताए तो कैसे? पापा की बिगड़ती तबीयत उसे अपने उठाए कदमों को वापस लेने को बाध्य कर देते। यादों की इस दुखों की तपती रेत पर नलिनी पैदल चल रही थी कि अचानक मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल पर पापा का नंबर था, आवाज आई कि पापा हॉस्पिटल में भर्ती हैं तुम ज़ल्दी आ जाओ। बड़ी बहन की कंपकंपाती आवाज़ ने नलिनी को अन्दर से झकझोर दिया। अपने पिछ्ले पाँच साल के सफ़र को एक तरफ छोड़ नलिनी ने तुरंत बैग पैक किया और बेटी को साथ लेके फ्लाइट से सीधा पापा को मिलने हॉस्पिटल पहुँच गई।

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