अंतर्जातीय विवाह  सलिल सरोज

अंतर्जातीय विवाह

शादी ना केवल दो व्यक्तियों में होती हैं बल्कि दो परिवारों में होती है और बुजुर्गों को समय के अनुसार बदलना ही पड़ेगा अगर बच्चों की ख़ुशी प्यारी है और सामाजिक उत्थान के प्रति सचेत हैं तो।

बेटा, तुम तो कहते थे तुम शादी वहीं करोगे जहाँ हम चाहेंगे, लेकिन आज तुम हमें बता रहे हो कि तुम किसी लड़की को कई वर्षों से जानते हो और उसी से शादी करना चाहते हो। हमें तो इस बात की भनक भी नहीं लगने दी तुमने! पूरे गाँव में लोग तुम्हारी शराफत की मिसालें देते हैं और तुम क्या से क्या निकले? बिलकुल दूसरों की तरह, जिन्हें माँ -बाप की कोई फ़िक्र नहीं, बस अपनी ख़ुशी और अपनी सहूलियत के बारे में सोचते हैं।

माँ, तुम ने ही तो कहा था कि अगर कोई पसंद आ जाए तो शादी कर लेना। जो तकलीफ हमें लड़की ढूंढने में उठानी पड़ेगी, वह तो ख़त्म हो जाएगी। और मैंने कौन सी शादी कर ली है। आपको बता ही रहा हूँ और हम शादी की हर रस्म आपके कहे अनुसार करने को भी तैयार हैं।

बेटा, इतना अहसान करने की जरूरत नहीं है। जब तुमने सोच ही लिया है तो हमारी राय की क्या जरूरत है। वो पढ़ी-लिखी लड़की तुम्हारे माँ-बाप को तो गँवार ही समझेगी और उसी तरह का बर्ताव भी करेगी। तब हम पर क्या बीतेगी, कभी सोचा भी है तुमने?

माँ, तुमने मन में यह बात पाल रखी है कि पढ़ी-लिखी लड़कियाँ अच्छी बहू नहीं हो सकती, वह सास-ससुर का ध्यान नहीं रख सकती और सही तरीके से पेश नहीं आ सकती और अपना हुक्म चलाती हैं। मुझे याद है कि दादी को भी ऐसा ही लगता था जबकि दादी और आप दोनों ही ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। हर सास को अपनी बहू को देख कर लगता है कि उसका ताज छिनने वाला है, लेकिन वो ये भूल जाती हैं कि अगर किसी से जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है तो उसे कुछ अधिकार भी दिए जाते हैं और समय के अनुसार हर चीज़ बदलती है और अगर ना बदले तो लोग उन्हें समाज से काट देते हैं या खुद अलग हो जाते हैं।

हाँ, तुम तो बहुत पढ़-लिख गए हो ना, इसलिए हम तुम्हें ज़माने के साथ चलने वाले नहीं लगते। तुम्हें हमारी शर्म भी आने लगी होगी। तुम तो यह भी भूल गए होंगे कि किन परिस्थतियों में हमने तुमको पाल-पोस कर बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया ताकि तुम अपनी सारी पढाई अपने माँ-बाप पर झाड़ सको।

माँ, अगर आपको कुछ सुनना ही नहीं है और वही करना है जो आप चाहती हैं तो फिर मुझे क्यों पढ़ाया लिखाया। अगर मैं पढ़-लिख कर भी अपने मन की बात ना कह सकूँ तो मेरा पढ़ना-लिखना सच में बेकार है। आपको यह तो यकीन है कि मेरा बेटा पढ़-लिख कर अच्छा ऑफिसर बन जाएगा, सही नौकरी पा सकेगा और देश चला सकेगा लेकिन आपको यह बिलकुल यकीन नहीं हैं कि आपका बेटा पढ़-लिख कर अपने लिए एक सही लड़की ढूंढ पाएगा। यह बात मेरी समझ में ही नहीं आती।

लड़की तो अपने जात की है ना ?

नहीं लड़की हमसे ऊपर जात की है।

बस यही बाकी था। उसने हमारी जो इज़्ज़त करनी थी वो हो चुकी और शादी के बाद तू भी उसके आगे पीछे नौकर की तरह डोलेगा। वो हुक्म चलाएगी और तू सुनता रहेगा। ये ऊपर जात वाले नीचे जात वालों के साथ ऐसा ही करते हैं चाहे शादी करके करें या किसी और तरीके से। तुमको यह बात अभी समझ में नहीं आएगी लेकिन शादी के बाद माँ की बात अच्छी तरह से याद आएगी।

माँ, आपकी और पापा की शादी तो एक ही जात में हुई है और पापा किस तरह आपकी बातें सुनते हैं और आप में कितने झगड़े होते हैं यह किसी से छुपा हुआ नहीं हैं। जाति का फर्क जरूर है लेकिन आपसी समझ से सब ठीक हो जाता है। शादी में सब ठीक होने के लिए दोनों परिवारों का ठीक होना और आपसी सहमति जरूरी होती है। और आजकल कौन इस तरह की बात करता है। आप ही तो कहती थी, बेटा पढ़ लिख कर जाति मिटाने के लिए कुछ जरूर करना। आज जब मैं स्वयं से इसकी शुरुआत करने जा रहा हूँ तो सबसे ज्यादा दिक्कत आपको ही आ रही है।

तुम भी जानते हो कि यह सब बातें कहने-सुनने में अच्छी लगती हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बेटा पढ़-लिख कर विद्रोही हो जाएगा और अपने माँ-बाप के खिलाफ हो जाएगा। अगर पता होता पढ़-लिख कर तुम इतना बदल जाओगे तो हम तुम्हें पढ़ने के लिए बड़े शहरों में भेजते ही नहीं। यहीं पढ़ाते ताकि तुम हमें समझ तो पाते।

माँ, मैं आपको समझ रहा हूँ इसलिए आपसे सारी बातें कर रहा हूँ। बहू पढ़ी-लिखी आएगी तो आपके दस काम यूँ ही कर देगी। वो आप पर बोझ नहीं होगी। घर के खर्चे में हाथ बटाएगी और बेहतर भविष्य ले कर आएगी। देखो, माँ एक बात तो तय है कि मैं शादी उसी लड़की से करूँगा चाहे कोई आए या ना आए। सबने अपनी ज़िंदगी जी ली है अपनी तरह से तो मैं भी अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीना चाहता हूँ जो ना केवल सही है बल्कि मेरा अधिकार भी है। अगर शादी के बाद आपका ख्याल ना रखा जाए तो आपकी चिंता वाजिब है, वरना यह सब घर में आग लगाने जैसी बातें हैं जिसका कोई अंत नहीं।

मतलब तुम्हारी शादी में तुम्हारे माँ-बाप नहीं आएँ तो भी तुम शादी कर लोगे?

हाँ, बिलकुल। शादी के लिए लड़का-लड़की ज्यादा जरूरी हैं जिन्हें साथ में अपनी ज़िंदगी बितानी है। समाज क्या कहता है, क्या कहेगा इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं कुछ भी करूँ, सबको खुश नहीं कर पाऊँगा, तो क्यों ना कम से कम दो आदमी तो खुश रहें। मैं शादी अपने लिए कर रहा हूँ, समाज और बिरादरी के लिए नहीं।

वाह बेटा, हमें तुम से यही उम्मीद थी। समझ लो आज से तुम्हारे माँ-बाप मर गए। मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना। चले जाओ।

अपने विचार साझा करें


  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com